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बे-सबब आज आँख पुर-नम है | शाही शायरी
be-sabab aaj aankh pur-nam hai

ग़ज़ल

बे-सबब आज आँख पुर-नम है

कौसर नियाज़ी

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बे-सबब आज आँख पुर-नम है
जाने किस बात का मुझे ग़म है

फिर कोई एहतिमाम-ए-मातम है
मेरे सीने में दर्द कम कम है

ये तअल्लुक़ ही मुझ को क्या कम है
आप के आस्ताँ पे सर ख़म है

उन के क्यूँ हो के रह गए 'कौसर'
बज़्म-ए-अहबाब हम से बरहम है