EN اردو
उस ने हर मश्क़-ए-सितम हम पे रवा रक्खी है | शाही शायरी
usne har mashq-e-sitam hum pe rawa rakkhi hai

ग़ज़ल

उस ने हर मश्क़-ए-सितम हम पे रवा रक्खी है

कौसर नियाज़ी

;

उस ने हर मश्क़-ए-सितम हम पे रवा रक्खी है
हम ने आवाज़ भी सीने में दबा रक्खी है

क़त्ल-गाहों में लहू अपना निछावर कर के
शम-ए-इंसाफ़ की लौ हम ने बढ़ा रक्खी है

कहीं बिखरी हैं किताबें कहीं मैले कपड़े
घर की हालत ही अजब हम ने बना रक्खी है

अपने वहशत-ज़दा कमरे की इक अलमारी में
तेरी तस्वीर अक़ीदत से सजा रक्खी है

हम किसी बात का शिकवा न करेंगे 'कौसर'
मोहर होंटों पे ख़मोशी की लगा रक्खी है