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जीम जाज़िल शायरी | शाही शायरी

जीम जाज़िल शेर

5 शेर

अश्क आँखों से ये कह कर निकला
ये तिरे ज़ब्त की हद है? हद है

जीम जाज़िल




एक बच्चा सा बे-सबब 'जाज़िल'
बैठा रहता है रूठ कर मुझ में

जीम जाज़िल




मैं अपने जिस्म के अंदर न दफ़्न हो जाऊँ
मुझे वजूद के गिरते हुए मकाँ से निकाल

जीम जाज़िल




रक्खी थी तस्वीर तुम्हारी आँखों में
हम ने सारी रात गुज़ारी आँखों में

जीम जाज़िल




ज़िंदगी तुझ को तिरे दर्द के हर इक पल को
हम ने जिस तरह गुज़ारा है ख़ुदा जानता है

जीम जाज़िल