बे-घर होना बे-घर रहना सब अच्छा ठहरा
घर के अंदर घर नहीं पाया शहर में पाया शहर
इफ़्तिख़ार क़ैसर
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इस क़दर बढ़ने लगे हैं घर से घर के फ़ासले
दोस्तों से शाम के पैदल सफ़र छीने गए
इफ़्तिख़ार क़ैसर
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मिरे चेहरे को चेहरा कब इनायत कर रहे हो
तुम्हें मेरे सिवा चेहरा तुम्हारा कौन देगा
इफ़्तिख़ार क़ैसर
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सारे दरिया फूट पड़ेंगे इक दूजे के बीच
इक दिन आ कर मिल जाएगी तेरी मेरी प्यास
इफ़्तिख़ार क़ैसर
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