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अपने ख़ूँ को ख़र्च किया है और कमाया शहर | शाही शायरी
apne KHun ko KHarch kiya hai aur kamaya shahr

ग़ज़ल

अपने ख़ूँ को ख़र्च किया है और कमाया शहर

इफ़्तिख़ार क़ैसर

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अपने ख़ूँ को ख़र्च किया है और कमाया शहर
सारे मंज़र टूट गए और काम न आया शहर

बे-घर होना बे-घर रहना सब अच्छा ठहरा
घर के अंदर घर नहीं पाया शहर में पाया शहर

सात समुंदर पार भी आँखें मेरे साथ न आईं
चारों जानिब ख़्वाब हैं मेरे और पराया शहर

काले शहर को रौशन रक्खा शहर के लोगों ने
दीवानों ने दिए जलाए और बुझाया शहर

शहर के ऊँचे बुर्ज भी मेरे क़द से छोटे थे
छोटे छोटे लोगों ने क्या ख़ूब बनाया शहर