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हम से अपने गाँव की मिट्टी के घर छीने गए | शाही शायरी
humse apne ganw ki miTTi ke ghar chhine gae

ग़ज़ल

हम से अपने गाँव की मिट्टी के घर छीने गए

इफ़्तिख़ार क़ैसर

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हम से अपने गाँव की मिट्टी के घर छीने गए
जिस तरह शहरी परिंदों से शजर छीने गए

तितलियों ने काग़ज़ी फूलों पे डेरा कर लिया
रास्ते में जुगनुओं के बाल-ओ-पर छीने गए

इस क़दर बढ़ने लगे हैं घर से घर के फ़ासले
दोस्तों से शाम के पैदल सफ़र छीने गए

काले सूरज की ज़िया से शहर अंधा हो गया
ख़ून में ख़ुशबू उगाने के हुनर छीने गए

आँख आँखों से ज़बानों से ज़बाँ छीनी गई
दास्ताँ से दास्तानों के शरर छीने गए