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दूर दूर तक सन्नाटा है कोई नहीं है पास | शाही शायरी
dur dur tak sannaTa hai koi nahin hai pas

ग़ज़ल

दूर दूर तक सन्नाटा है कोई नहीं है पास

इफ़्तिख़ार क़ैसर

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दूर दूर तक सन्नाटा है कोई नहीं है पास
आ जा दरिया होंट से लग जा पी ले मेरी प्यास

इश्क़ के पहले पहले वार से वो भी टूट गई
इक जोगी का प्यार न आया उस लड़की को रास

रोज़ाना पोशाकें बदलूँ और ख़ुशबूएँ भी
मेरे जिस्म से उतरे ना मेरी मिट्टी की बास

सारे दरिया फूट पड़ेंगे इक दूजे के बीच
इक दिन आ कर मिल जाएगी तेरी मेरी प्यास

दिल के अंदर नाच रहे हैं कितने शाह हसीन
मेरे इश्क़ की फूटी है अब रौशन लाल कपास