दूर दूर तक सन्नाटा है कोई नहीं है पास
आ जा दरिया होंट से लग जा पी ले मेरी प्यास
इश्क़ के पहले पहले वार से वो भी टूट गई
इक जोगी का प्यार न आया उस लड़की को रास
रोज़ाना पोशाकें बदलूँ और ख़ुशबूएँ भी
मेरे जिस्म से उतरे ना मेरी मिट्टी की बास
सारे दरिया फूट पड़ेंगे इक दूजे के बीच
इक दिन आ कर मिल जाएगी तेरी मेरी प्यास
दिल के अंदर नाच रहे हैं कितने शाह हसीन
मेरे इश्क़ की फूटी है अब रौशन लाल कपास
ग़ज़ल
दूर दूर तक सन्नाटा है कोई नहीं है पास
इफ़्तिख़ार क़ैसर