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दिवाकर राही शायरी | शाही शायरी

दिवाकर राही शेर

16 शेर

अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में

the tavern does not even give that much wine to me
that I was wont to waste in the goblet casually

दिवाकर राही




अबस इल्ज़ाम मत दो मुश्किलात-ए-राह को 'राही'
तुम्हारे ही इरादे में कमी मालूम होती है

दिवाकर राही




अगर ऐ नाख़ुदा तूफ़ान से लड़ने का दम-ख़म है
इधर कश्ती न ले आना यहाँ पानी बहुत कम है

दिवाकर राही




अगर मौजें डुबो देतीं तो कुछ तस्कीन हो जाती
किनारों ने डुबोया है मुझे इस बात का ग़म है

दिवाकर राही




ऐन-फ़ितरत है कि जिस शाख़ पे फल आएँगे
इंकिसारी से वही शाख़ लचक जाएगी

दिवाकर राही




बात हक़ है तो फिर क़ुबूल करो
ये न देखो कि कौन कहता है

दिवाकर राही




बहुत आसान है दो घूँट पी लेना तो ऐ 'राही'
बड़ी मुश्किल से आते हैं मगर आदाब-ए-मय-ख़ाना

दिवाकर राही




ग़ुस्से में बरहमी में ग़ज़ब में इताब में
ख़ुद आ गए हैं वो मिरे ख़त के जवाब में

दिवाकर राही




इस दौर-ए-तरक़्क़ी के अंदाज़ निराले हैं
ज़ेहनों में अँधेरे हैं सड़कों पे उजाले हैं

दिवाकर राही