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अता तुराब शायरी | शाही शायरी

अता तुराब शेर

8 शेर

चाहिए क्या तुम्हें तोहफ़े में बता दो वर्ना
हम तो बाज़ार के बाज़ार उठा लाएँगे

अता तुराब




हाँ तुझे भी तो मयस्सर नहीं तुझ सा कोई
है तिरा अर्श भी वीराँ मिरे पहलू की तरह

अता तुराब




इश्क़ तो अपने लहू में ही सँवरता है सो हम
किस लिए रुख़ पे कोई ग़ाज़ा लगा कर देखें

अता तुराब




क्या क्या न प्यास जागे मिरे दिल के दश्त में
हसरत भी एक आग है लागे जो रात भर

अता तुराब




तराश और भी अपने तसव्वुर-ए-रब को
तिरे ख़ुदा से तो बेहतर मिरा सनम है अभी

अता तुराब




तूफ़ान-ए-बहर ख़ाक डराता मुझे 'तुराब'
उस से बड़ा भँवर तो सफ़ीने के बीच था

अता तुराब




वो इक सुख़न ही हमारी सनद न बन जाए
वो इक सुख़न जो तुम्हारी सनद नहीं रखता

अता तुराब




यूँ मोहब्बत से न हम ख़ाना-ब-दोशों को बुला
इतने सादा हैं कि घर-बार उठा लाएँगे

अता तुराब