नुमू-पज़ीर हूँ हर दम कि मुझ में दम है अभी
मिरा मक़ाम है जो भी वो मुझ से कम है अभी
तराश और भी अपने तसव्वुर-ए-रब को
तिरे ख़ुदा से तो बेहतर मिरा सनम है अभी
नहीं है ग़ैर की तस्बीह का कोई इम्काँ
मिरे लबों पे तो ज़िक्र-ए-मनम मनम है अभी
'तुराब' पर कहाँ होता है ये ख़ुदा का ख़ला
मिरे वजूद के अंदर कहीं अदम है अभी
ग़ज़ल
नुमू-पज़ीर हूँ हर दम कि मुझ में दम है अभी
अता तुराब