EN اردو
नुमू-पज़ीर हूँ हर दम कि मुझ में दम है अभी | शाही शायरी
numu-pazir hun har dam ki mujh mein dam hai abhi

ग़ज़ल

नुमू-पज़ीर हूँ हर दम कि मुझ में दम है अभी

अता तुराब

;

नुमू-पज़ीर हूँ हर दम कि मुझ में दम है अभी
मिरा मक़ाम है जो भी वो मुझ से कम है अभी

तराश और भी अपने तसव्वुर-ए-रब को
तिरे ख़ुदा से तो बेहतर मिरा सनम है अभी

नहीं है ग़ैर की तस्बीह का कोई इम्काँ
मिरे लबों पे तो ज़िक्र-ए-मनम मनम है अभी

'तुराब' पर कहाँ होता है ये ख़ुदा का ख़ला
मिरे वजूद के अंदर कहीं अदम है अभी