तन्हाइयों के दश्त में भागे जो रात भर
वो दिन को ख़ाक जागेगा जागे जो रात भर
फ़िक्र-ए-मआश ने उन्हें क़िस्सा बना दिया
सजती थीं अपनी महफ़िलें आगे जो रात भर
वो दिन की रौशनी में परेशान हो गया
सुलझा रहा था बख़्त के धागे जो रात भर
क्या क्या न प्यास जागे मिरे दिल के दश्त में
हसरत भी एक आग है लागे जो रात भर
दश्त-ए-ग़ज़ल में जाने कहाँ तक चले गए
सू-ए-ग़ज़ाल क़ाफ़िया भागे जो रात भर
ग़ज़ल
तन्हाइयों के दश्त में भागे जो रात भर
अता तुराब