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कब कहाँ क्या मिरे दिलदार उठा लाएँगे | शाही शायरी
kab kahan kya mere dildar uTha laenge

ग़ज़ल

कब कहाँ क्या मिरे दिलदार उठा लाएँगे

अता तुराब

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कब कहाँ क्या मिरे दिलदार उठा लाएँगे
वस्ल में भी दिल-ए-बे-ज़ार उठा लाएँगे

चाहिए क्या तुम्हें तोहफ़े में बता दो वर्ना
हम तो बाज़ार के बाज़ार उठा लाएँगे

यूँ मोहब्बत से न हम ख़ाना-ब-दोशों को बुला
इतने सादा हैं कि घर-बार उठा लाएँगे

एक मिसरे से ज़ियादा तो नहीं बार-ए-वजूद
तुम पुकारोगे तो हर बार उठा लाएँगे

गर किसी जश्न-ए-मसर्रत में चले भी जाएँ
चुन के आँसू तिरे ग़म-ख़्वार उठा लाएँगे

कौन सा फूल सजेगा तिरे जूड़े में भला
इस शश-ओ-पंज में गुलज़ार उठा लाएँगे