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अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन शायरी | शाही शायरी

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन शेर

8 शेर

आओ तो मेरे सहन में हो जाए रौशनी
मुद्दत गुज़र गई है चराग़ाँ किए हुए

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन




आज भी नक़्श हैं दिल पर तिरी आहट के निशाँ
हम ने उस राह से औरों को गुज़रने न दिया

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन




होश-ओ-हवास खोने लगा हूँ फ़िराक़ में
तन्हाइयों ने ऐसा मुक़फ़्फ़ल किया मुझे

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन




इक लफ़्ज़ याद था मुझे तर्क-ए-वफ़ा मगर
भूला हुआ हूँ ठोकरें खाने के बअ'द भी

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन




सवेरा ले के आता है मिरे ख़्वाबों की ताबीरें
मगर जब शाम होती है तो उन की याद आती है

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन




तमाम दिन की मशक़्क़त-भरी तकान के ब'अद
तमाम रात मोहब्बत से फिर जगाऊँ उसे

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन




याद रखना भी इक इबादत है
क्यूँ न हम उन का हाफ़िज़ा हो जाएँ

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन




ज़िंदगी की हक़ीक़त अजब हो गई
आज कल हो रही है बसर ख़्वाब में

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन