तीर-ए-नज़र ने आप की घाएल किया मुझे
फिर शौक़-ए-इंतिज़ार ने पागल किया मुझे
ऐसी चली हवा-ए-गुलिस्ताँ मिरी तरफ़
छू कर बू-ए-गुलाब ने संदल किया मुझे
बेटों ने मेरे नाम की दस्तार पहन ली
और बेटियों ने सूरत-ए-आँचल किया मुझे
बढ़ने लगी है दिल की तमन्ना-ए-आशिक़ी
यूँ आ के तेरी याद ने बेकल किया मुझे
होश-ओ-हवास खोने लगा हूँ फ़िराक़ में
तन्हाइयों ने ऐसा मुक़फ़्फ़ल किया मुझे
पहले तो आज़माया अता-ए-बहिश्त से
फिर भेज कर जहान में अफ़ज़ल किया मुझे
हर शख़्स मो'तरिफ़ कि मुहिब्ब-ए-वतन हूँ मैं
फिर अदलिया ने क्यूँ सर-ए-मक़्तल किया मुझे
इब्न-ए-चमन है तेरी वफ़ाओं पे जाँ-निसार
अपना बना के तू ने मुकम्मल किया मुझे
ग़ज़ल
तीर-ए-नज़र ने आप की घाएल किया मुझे
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन