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असग़र आबिद शायरी | शाही शायरी

असग़र आबिद शेर

3 शेर

हम तो उस पस्ती-ए-एहसास पे जीते हैं जहाँ
ये भी मालूम नहीं जीत है क्या मात है क्या

असग़र आबिद




जिस्म पाबंद-ए-गुल सही 'आबिद'
दिल मगर वहशतों की बस्ती है

असग़र आबिद




उजलत के अलाव में किए फ़ैसले 'आबिद'
अब सोच की बर्फ़ानी खड़ाऊँ पे खड़े हैं

असग़र आबिद