हम तो उस पस्ती-ए-एहसास पे जीते हैं जहाँ
ये भी मालूम नहीं जीत है क्या मात है क्या
असग़र आबिद
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जिस्म पाबंद-ए-गुल सही 'आबिद'
दिल मगर वहशतों की बस्ती है
असग़र आबिद
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उजलत के अलाव में किए फ़ैसले 'आबिद'
अब सोच की बर्फ़ानी खड़ाऊँ पे खड़े हैं
असग़र आबिद
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