EN اردو
सीम-तन गुल-रुख़ों की बस्ती है | शाही शायरी
sim-tan gul-ruKHon ki basti hai

ग़ज़ल

सीम-तन गुल-रुख़ों की बस्ती है

असग़र आबिद

;

सीम-तन गुल-रुख़ों की बस्ती है
ये बदलती रुतों की बस्ती है

कौन समझे सुकूत की बातें
शहर ख़ामोशियों की बस्ती है

ये लकीरें ग़मों के रस्ते हैं
ये हथेली दुखों की बस्ती है

ज़िंदगी तक ज़कात ठहरा दी
ये मेरे राज़िकों की बस्ती है

आसमाँ की तरह है साथ कोई
हिज्र भी क़ुर्बतों की बस्ती है

वो तलातुम-शिआर क्या जाने
झील भी पानियों की बस्ती है

अक़्ल तफ़रीक़ का तमाशा है
आगही फ़ासलों की बस्ती है

जिस्म पाबंद-ए-गुल सही 'आबिद'
दिल मगर वहशतों की बस्ती है