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अली अकबर नातिक़ शायरी | शाही शायरी

अली अकबर नातिक़ शेर

15 शेर

आधे पेड़ पे सब्ज़ परिंदे आधा पेड़ आसेबी है
कैसे खुले ये राम-कहानी कौन सा हिस्सा मेरा है

अली अकबर नातिक़




आसमाँ के रौज़नों से लौट आता था कभी
वो कबूतर इक हवेली के छजों में खो गया

अली अकबर नातिक़




बस्तियों वाले तो ख़ुद ओढ़ के पत्ते, सोए
दिल-ए-आवारा तुझे रात सँभाला किस ने

अली अकबर नातिक़




चराग़ बाँटने वालों प हैरतें न करो
ये आफ़्ताब हैं, शब की दुआ में शाद रहें

अली अकबर नातिक़




धूप फैली तो कहा दीवार ने झुक कर मुझे
मिल गले मेरे मुसाफ़िर, मेरे साए के हबीब

अली अकबर नातिक़




फ़ाख़ताएँ बोलती हैं बाजरों के देस में
तू भी सुन ले आसमाँ ये गीत मेरे नाम का

अली अकबर नातिक़




ग़ुबार-ए-शहर में उसे न ढूँड जो ख़िज़ाँ की शब
हवा की राह से मिला, हवा की राह पर गया

अली अकबर नातिक़




हिजाब आ गया था मुझ को दिल के इज़्तिराब पर
यही सबब है तेरे दर पे लौट कर न आ सका

अली अकबर नातिक़




इतना आसाँ नहीं पानी से शबीहें धोना
ख़ुद भी रोएगा मुसव्विर ये क़यामत कर के

अली अकबर नातिक़