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क़ैद-ख़ाने की हवा में शोर है आलाम का | शाही शायरी
qaid-KHane ki hawa mein shor hai aalam ka

ग़ज़ल

क़ैद-ख़ाने की हवा में शोर है आलाम का

अली अकबर नातिक़

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क़ैद-ख़ाने की हवा में शोर है आलाम का
भेद खुलता क्यूँ नहीं ऐ दिल तिरे आराम का

फ़ाख़ताएँ बोलती हैं बाजरों के देस में
तू भी सुन ले आसमाँ ये गीत मेरे नाम का

ठंडे पानी के गगन में सातवीं का चाँद है
या गिरा है बर्फ़ में किंगरा तुम्हारे बाम का

कूकता फिरता है कोई धूप की गलियों में शख़्स
सुन लिया है उस ने शायद हाल मेरी शाम का