अबरू न सँवारा करो कट जाएगी उँगली
नादान हो तलवार से खेला नहीं करते
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
बड़े सीधे-साधे बड़े भोले-भाले
कोई देखे इस वक़्त चेहरा तुम्हारा
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
हमीं हैं मौजिब-ए-बाब-ए-फ़साहत हज़रत-ए-'शाइर'
ज़माना सीखता है हम से हम वो दिल्ली वाले हैं
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
इक बात कहें तुम से ख़फ़ा तो नहीं होगे
पहलू में हमारे दिल-ए-मुज़्तर नहीं मिलता
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
इस लिए कहते थे देखा मुँह लगाने का मज़ा
आईना अब आप का मद्द-ए-मुक़ाबिल हो गया
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
कलेजे में हज़ारों दाग़ दिल में हसरतें लाखों
कमाई ले चला हूँ साथ अपने ज़िंदगी भर की
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
किस तरह जवानी में चलूँ राह पे नासेह
ये उम्र ही ऐसी है सुझाई नहीं देता
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
लो हम बताएँ ग़ुंचा-ओ-गुल में है फ़र्क़ क्या
इक बात है कही हुई इक बे-कही हुई
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
मिलना न मिलना ये तो मुक़द्दर की बात है
तुम ख़ुश रहो रहो मिरे प्यारे जहाँ कहीं
आग़ा शाएर क़ज़लबाश