पामाल कर के पूछते हैं किस अदा से वो
इस दिल में आग थी मिरे तलवे झुलस गए
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
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पहले इस में इक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था
रूठना अब तो तिरी आदत में शामिल हो गया
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
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तुम कहाँ वस्ल कहाँ वस्ल की उम्मीद कहाँ
दिल के बहकाने को इक बात बना रखी है
आग़ा शाएर क़ज़लबाश