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आफ़ताब शम्सी शायरी | शाही शायरी

आफ़ताब शम्सी शेर

8 शेर

देख कर उस को लगा जैसे कहीं हो देखा
याद बिल्कुल नहीं आया मुझे घंटों सोचा

आफ़ताब शम्सी




जो दिल में है वही बाहर दिखाई देता है
अब आर-पार ये पत्थर दिखाई देता है

आफ़ताब शम्सी




जो साथ लाए थे घर से वो खो गया है कहीं
इरादा वर्ना हमारा भी वापसी का था

आफ़ताब शम्सी




मैं जंगलों में दरिंदों के साथ रहता रहा
ये ख़ौफ़ है कि अब इंसाँ न आ के खा ले कोई

आफ़ताब शम्सी




नाम अपना ही मैं सब से खड़ा पूछ रहा था
कुछ मेरी समझ में नहीं आया कि ये क्या था

आफ़ताब शम्सी




राह तकते जिस्म की मज्लिस में सदियाँ हो गईं
झाँक कर अंधे कुएँ में अब तो कोई बोल दे

आफ़ताब शम्सी




सभी हैं अपने मगर अजनबी से लगते हैं
ये ज़िंदगी है कि होटल में शब गुज़ारी है

आफ़ताब शम्सी




तूफ़ान की ज़द में थे ख़यालों के सफ़ीने
मैं उल्टा समुंदर की तरफ़ भाग रहा था

आफ़ताब शम्सी