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टूटा हुआ आईना जो रस्ते में पड़ा था | शाही शायरी
TuTa hua aaina jo raste mein paDa tha

ग़ज़ल

टूटा हुआ आईना जो रस्ते में पड़ा था

आफ़ताब शम्सी

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टूटा हुआ आईना जो रस्ते में पड़ा था
सूरज की तरह मेरी निगाहों में चुभा था

नाम अपना ही मैं सब से खड़ा पूछ रहा था
कुछ मेरी समझ में नहीं आया कि ये क्या था

आँखों के दरीचे नज़र आते थे मुक़फ़्फ़ल
और ज़ेहन के कमरे में धुआँ फैल रहा था

जाती हुई बारात ने इक लम्हा ठिठक कर
ठहरी हुई इक लाश पे मातम भी किया था

माज़ी नहीं मरता है यक़ीं आ गया मुझ को
बीता हुआ हर पल वो लिए साथ खड़ा था

तूफ़ान की ज़द में थे ख़यालों के सफ़ीने
मैं उल्टा समुंदर की तरफ़ भाग रहा था