है जिस्म सख़्त मगर दिल बहुत ही नाज़ुक है
कि जैसे आईना महफ़ूज़ इक चट्टान में है
अब्बास दाना
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तुम आके लौट गए फिर भी हो यहीं मौजूद
तुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू मिरे मकान में है
अब्बास दाना
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उस से पूछो अज़ाब रस्तों का
जिस का साथी सफ़र में बिछड़ा है
अब्बास दाना
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