मौत ने मुस्कुरा के पूछा है
ज़िंदगी का मिज़ाज कैसा है
उस की आँखों में मेरी ग़ज़लें हैं
मेरी ग़ज़लों में उस का चेहरा है
उस से पूछो अज़ाब रस्तों का
जिस का साथी सफ़र में बिछड़ा है
चाँदनी सिर्फ़ है फ़रेब-ए-नज़र
चाँद के घर में भी अंधेरा है
इश्क़ में भी मज़ा है जीने का
ग़म उठाने का गर सलीक़ा है
छोड़ ज़ख़्मों पे तब्सिरा करना
अब क़लम से लहू टपकता है
रौशनी की ज़बान में 'दाना'
वो चराग़ों से बात करता है
ग़ज़ल
मौत ने मुस्कुरा के पूछा है
अब्बास दाना