जान-लेवा थीं ख़्वाहिशें वर्ना
वस्ल से इंतिज़ार अच्छा था
जौन एलिया
उसे ख़बर है कि अंजाम-ए-वस्ल क्या होगा
वो क़ुर्बतों की तपिश फ़ासले में रखती है
ख़ालिद यूसुफ़
वस्ल की रात है बिगड़ो न बराबर तो रहे
फट गया मेरा गरेबान तुम्हारा दामन
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी
मिरे सवाल-ए-विसाल पर तुम नज़र झुका कर खड़े हुए हो
तुम्हीं बताओ ये बात क्या है सवाल पूरा जवाब आधा
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
आप तो मुँह फेर कर कहते हैं आने के लिए
वस्ल का वादा ज़रा आँखें मिला कर कीजिए
लाला माधव राम जौहर
अरमान वस्ल का मिरी नज़रों से ताड़ के
पहले ही से वो बैठ गए मुँह बिगाड़ के
लाला माधव राम जौहर
बताओ कौन सी सूरत है उन से मिलने की
न उस तरफ़ उन्हें फ़ुर्सत न हम इधर ख़ाली
लाला माधव राम जौहर