हम जो मस्त-ए-शराब होते हैं
ज़र्रे से आफ़्ताब होते हैं
है ख़राबात सोहबत-ए-वाइज़
लोग नाहक़ ख़राब होते हैं
क्या कहें कैसे रोज़ ओ शब हम से
अमल-ए-ना-सवाब होते हैं
बादशह हैं गदा, गदा सुल्तान
कुछ नए इंक़लाब होते हैं
हम जो करते हैं मय-कदे में दुआ
अहल-ए-मस्जिद को ख़्वाब होते हैं
वही रह जाते हैं ज़बानों पर
शेर जो इंतिख़ाब होते हैं
कहते हैं मस्त रिंद-ए-सौदाई
ख़ूब हम को ख़िताब होते हैं
आँसुओं से 'अमीर' हैं रुस्वा
ऐसे लड़के अज़ाब होते हैं
ग़ज़ल
हम जो मस्त-ए-शराब होते हैं
अमीर मीनाई