EN اردو
पपड़ी शायरी | शाही शायरी

पपड़ी

16 शेर

साक़ी ने निगाहों से पिला दी है ग़ज़ब की
रिंदान-ए-अज़ल देखिए कब होश में आएँ

फ़िगार उन्नावी




मय-कदा है शैख़ साहब ये कोई मस्जिद नहीं
आप शायद आए हैं रिंदों के बहकाए हुए

हबीब मूसवी




रिंदों को वाज़ पंद न कर फ़स्ल-ए-गुल में शैख़
ऐसा न हो शराब उड़े ख़ानक़ाह में

हबीब मूसवी




मय न हो बू ही सही कुछ तो हो रिंदों के लिए
इसी हीले से बुझेगी हवस-ए-जाम-ए-शराब

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा




रिंद मस्जिद में गए तो उँगलियाँ उठने लगीं
खिल उठे मय-कश कभी ज़ाहिद जो उन में आ गए

इफ़्तिख़ार आरिफ़




रहें न रिंद ये वाइज़ के बस की बात नहीं
तमाम शहर है दो चार दस की बात नहीं

कैफ़ी आज़मी




वाइज़ ख़ता-मुआफ़ कि रिंदान-ए-मय-कदा
दिल के सिवा किसी का कहा मानते नहीं

करम हैदराबादी