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रकीब शायरी | शाही शायरी

रकीब

26 शेर

अपनी ज़बान से मुझे जो चाहे कह लें आप
बढ़ बढ़ के बोलना नहीं अच्छा रक़ीब का

लाला माधव राम जौहर




कू-ए-जानाँ में न ग़ैरों की रसाई हो जाए
अपनी जागीर ये या-रब न पराई हो जाए

लाला माधव राम जौहर




सदमे उठाएँ रश्क के कब तक जो हो सो हो
या तो रक़ीब ही नहीं या आज हम नहीं

लाला माधव राम जौहर




जो कोई आवे है नज़दीक ही बैठे है तिरे
हम कहाँ तक तिरे पहलू से सरकते जावें

whoever comes takes his place here right by your side
how long with this displacement from you shall I abide

मीर हसन




मत बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता पर मिरे हँस ऐ रक़ीब तू
होगा तिरे नसीब भी ये ख़्वाब देखना

मीर हसन




जिस का तुझ सा हबीब होवेगा
कौन उस का रक़ीब होवेगा

मीर सोज़




गो आप ने जवाब बुरा ही दिया वले
मुझ से बयाँ न कीजे अदू के पयाम को

though you may have replied to him as rudely as you claim
don't tell me what was in my rival's message, just the same

मोमिन ख़ाँ मोमिन