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रकीब शायरी | शाही शायरी

रकीब

26 शेर

उस नक़्श-ए-पा के सज्दे ने क्या क्या किया ज़लील
मैं कूचा-ए-रक़ीब में भी सर के बल गया

bowing to her footsteps brought me shame I dread
I went to my rival's street standing on my head

मोमिन ख़ाँ मोमिन




दोज़ख़ ओ जन्नत हैं अब मेरी नज़र के सामने
घर रक़ीबों ने बनाया उस के घर के सामने

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी




ले मेरे तजरबों से सबक़ ऐ मिरे रक़ीब
दो-चार साल उम्र में तुझ से बड़ा हूँ मैं

क़तील शिफ़ाई




इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ
जैसे कोई निबाह रहा हो रक़ीब से

साहिर लुधियानवी




हमें नर्गिस का दस्ता ग़ैर के हाथों से क्यूँ भेजा
जो आँखें ही दिखानी थीं दिखाते अपनी नज़रों से

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़