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नकाब शायरी | शाही शायरी

नकाब

22 शेर

है देखने वालों को सँभलने का इशारा
थोड़ी सी नक़ाब आज वो सरकाए हुए हैं

अर्श मलसियानी




है देखने वालों को सँभलने का इशारा
थोड़ी सी नक़ाब आज वो सरकाए हुए हैं

अर्श मलसियानी




ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते हम को
गाँव के लोग हैं हम शहर में कम आते हैं

बेदिल हैदरी




ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

what coyness this is, to abide,a screen beside her face
which neither does she clearly hide nor openly display

दाग़ देहलवी




जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं
क़यामत वही तो उठाए हुए हैं

हफ़ीज़ बनारसी




तसव्वुर में भी अब वो बे-नक़ाब आते नहीं मुझ तक
क़यामत आ चुकी है लोग कहते हैं शबाब आया

हफ़ीज़ जालंधरी




इसी उम्मीद पर तो जी रहे हैं हिज्र के मारे
कभी तो रुख़ से उट्ठेगी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

हाशिम अली ख़ाँ दिलाज़ाक