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उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं | शाही शायरी
uzr aane mein bhi hai aur bulate bhi nahin

ग़ज़ल

उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं

दाग़ देहलवी

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उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं

She is loth to come to me and keeps me well away
The cause for this hostility,she does not care to say

मुंतज़िर हैं दम-ए-रुख़्सत कि ये मर जाए तो जाएँ
फिर ये एहसान कि हम छोड़ के जाते भी नहीं

she bothers not I live or die, awaits my dying breath
and even a favour does imply, that she's not gone away

सर उठाओ तो सही आँख मिलाओ तो सही
नश्शा-ए-मय भी नहीं नींद के माते भी नहीं

at least do lift your face and let your eyes look into mine
no wine that stupefies as yet nor sleep that holds in sway

क्या कहा फिर तो कहो हम नहीं सुनते तेरी
नहीं सुनते तो हम ऐसों को सुनाते भी नहीं

what you just said do say once more,"I will pay you no heed"
to all of those, who thus ignore I have no words to say

ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

what coyness this is, to abide,a screen beside her face
which neither does she clearly hide nor openly display

मुझ से लाग़र तिरी आँखों में खटकते तो रहे
तुझ से नाज़ुक मिरी नज़रों में समाते भी नहीं

while you profess my ugliness does irritate your sight
and in my eyes your daintiness, can't be contained I say

देखते ही मुझे महफ़िल में ये इरशाद हुआ
कौन बैठा है उसे लोग उठाते भी नहीं

noticing my presence near, she asks of those around
Say who is this intruder here? and who has let him stay?

हो चुका क़त्अ तअल्लुक़ तो जफ़ाएँ क्यूँ हों
जिन को मतलब नहीं रहता वो सताते भी नहीं

if all relations have been spurned, then why this cruelty?
Those that are really unconcerned, don’t trouble you this way

ज़ीस्त से तंग हो ऐ 'दाग़' तो जीते क्यूँ हो
जान प्यारी भी नहीं जान से जाते भी नहीं

daaG If you're tired of this strife, why then remain alive?
As neither do you love your life nor do you leave the fray