सब देखने वाले उन्हें ग़श खाए हुए हैं
इस पर भी तअ'ज्जुब है वो शरमाए हुए हैं
ऐ जान-ए-जहाँ हम को ज़माने से ग़रज़ क्या
जब खो के ज़माने को तुझे पाए हुए हैं
हैरान हूँ क्यूँ मुझ को दिखाई नहीं देते
सुनता हूँ मिरी बज़्म में वो आए हुए हैं
निस्बत की ये निस्बत है शरफ़ का ये शरफ़ है
तिरे हैं अगर हम तिरे ठुकराए हुए हैं
है देखने वालों को सँभलने का इशारा
थोड़ी सी नक़ाब आज वो सरकाए हुए हैं
ग़ज़ल
सब देखने वाले उन्हें ग़श खाए हुए हैं
अर्श मलसियानी