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महबूब शायरी | शाही शायरी

महबूब

37 शेर

जल्वा-गर बज़्म-ए-हसीनाँ में हैं वो इस शान से
चाँद जैसे ऐ 'क़मर' तारों भरी महफ़िल में है

क़मर जलालवी




तेरे क़ुर्बान 'क़मर' मुँह सर-ए-गुलज़ार न खोल
सदक़े उस चाँद सी सूरत पे न हो जाए बहार

क़मर जलालवी




ज़िंदगी कहते हैं किस को मौत किस का नाम है
मेहरबानी आप की न-मेहरबानी आप की

what is labeled living, how is death defined
Finding your favour, when you are unkind

रशीद लखनवी




चाँदनी रातों में चिल्लाता फिरा
चाँद सी जिस ने वो सूरत देख ली

रिन्द लखनवी




तुम हुस्न की ख़ुद इक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहीं
महफ़िल में तुम्हारे आने से हर चीज़ पे नूर आ जाता है

साहिर लुधियानवी




अदा-ओ-नाज़ ओ करिश्मा जफ़ा-ओ-जौर-ओ-सितम
उधर ये सब हैं इधर एक मेरी जाँ तन्हा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




मेरा माशूक़ है मज़ों में भरा
कभू मीठा कभू सलोना है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम