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महबूब शायरी | शाही शायरी

महबूब

37 शेर

इक तुझ को देखने के लिए बज़्म में मुझे
औरों की सम्त मस्लहतन देखना पड़ा

फ़ना निज़ामी कानपुरी




दुनिया से कहो जो उसे करना है वो कर ले
अब दिल में मिरे वो अलल-एलान रहेगा

फ़रहत एहसास




साँस लेती है वो ज़मीन 'फ़िराक़'
जिस पे वो नाज़ से गुज़रते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी




तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें

close to me you are there
should I speak or should I stare/see

फ़िराक़ गोरखपुरी




उस दुश्मन-ए-वफ़ा को दुआ दे रहा हूँ मैं
मेरा न हो सका वो किसी का तो हो गया

हफ़ीज़ बनारसी




रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
दहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम

हसरत मोहानी




कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा

T'was a full moon out last night, all evening there was talk of you
Some people said it was the moon,and some said that it was you

इब्न-ए-इंशा