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जुलूस-ए-तेग़-ओ-अलम जाने किस दयार का है | शाही शायरी
julus-e-tegh-o-alam jaane kis dayar ka hai

ग़ज़ल

जुलूस-ए-तेग़-ओ-अलम जाने किस दयार का है

मोहम्मद अहमद रम्ज़

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जुलूस-ए-तेग़-ओ-अलम जाने किस दयार का है
पस-ए-ग़ुबार भी इक सिलसिला ग़ुबार का है

ख़ला-ए-जाँ का सफ़र और फिर तन-ए-तन्हा
ये रास्ता भी बड़े जब्र ओ इख़्तियार का है

तुम आ गए हो तो मुझ को ज़रा सँभलने दो
अभी तो नश्शा सा आँखों में इंतिज़ार का है

मुक़ाम-ए-बे-ख़बरी है यहाँ से कितनी दूर
कि शहर-ए-दिल में बड़ा शोर शहरयार का है

नहीं है सहल मिरी तर्ज़ पर ग़ज़ल कहना
शिआर ये किसी यकता-ए-रोज़गार का है