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इंसान शायरी | शाही शायरी

इंसान

40 शेर

कुफ़्र ओ इस्लाम की कुछ क़ैद नहीं ऐ 'आतिश'
शैख़ हो या कि बरहमन हो पर इंसाँ होवे

हैदर अली आतिश




ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़




सब से पुर-अम्न वाक़िआ ये है
आदमी आदमी को भूल गया

जौन एलिया




आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है

People meet each other, fairly frequently
But, meeting of hearts, seldom does one see

जिगर मुरादाबादी




आदमी के पास सब कुछ है मगर
एक तन्हा आदमिय्यत ही नहीं

जिगर मुरादाबादी




इधर तेरी मशिय्यत है उधर हिकमत रसूलों की
इलाही आदमी के बाब में क्या हुक्म होता है

जोश मलीहाबादी




साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ

कैफ़ भोपाली