घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
बशीर बद्र
इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं
बशीर बद्र
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ऐ शैख़ आदमी के भी दर्जे हैं मुख़्तलिफ़
इंसान हैं ज़रूर मगर वाजिबी से आप
बेख़ुद देहलवी
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फ़रिश्ता है तो तक़द्दुस तुझे मुबारक हो
हम आदमी हैं तो ऐब-ओ-हुनर भी रखते हैं
दिल अय्यूबी
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देवताओं का ख़ुदा से होगा काम
आदमी को आदमी दरकार है
फ़िराक़ गोरखपुरी
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इंसान की बुलंदी ओ पस्ती को देख कर
इंसाँ कहाँ खड़ा है हमें सोचना पड़ा
हबीब हैदराबादी
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आदमी का आदमी हर हाल में हमदर्द हो
इक तवज्जोह चाहिए इंसाँ को इंसाँ की तरफ़
हफ़ीज़ जौनपुरी
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