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इंसान शायरी | शाही शायरी

इंसान

40 शेर

फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना
मगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा

अल्ताफ़ हुसैन हाली




जानवर आदमी फ़रिश्ता ख़ुदा
आदमी की हैं सैकड़ों क़िस्में

barbaric and human, angelic, divine
man, by many names, one may well define

अल्ताफ़ हुसैन हाली




बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है
हर आदमी में कोई दूसरा भी होता है

अनवर शऊर




आख़िर इंसान हूँ पत्थर का तो रखता नहीं दिल
ऐ बुतो इतना सताओ न ख़ुदा-रा मुझ को

अरशद अली ख़ान क़लक़




मेरी रुस्वाई के अस्बाब हैं मेरे अंदर
आदमी हूँ सो बहुत ख़्वाब हैं मेरे अंदर

असअ'द बदायुनी




मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं
मैं आदमी हूँ मिरा ए'तिबार मत करना

आसिम वास्ती




बनाया ऐ 'ज़फ़र' ख़ालिक़ ने कब इंसान से बेहतर
मलक को देव को जिन को परी को हूर ओ ग़िल्माँ को

बहादुर शाह ज़फ़र