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दोस्ती शायरी | शाही शायरी

दोस्ती

31 शेर

दोस्त दो-चार निकलते हैं कहीं लाखों में
जितने होते हैं सिवा उतने ही कम होते हैं

लाला माधव राम जौहर




जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुल्ह की दुआ
दुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो

लाला माधव राम जौहर




अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है
दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए

माहिर-उल क़ादरी




दोस्ती को बुरा समझते हैं
क्या समझ है वो क्या समझते हैं

नूह नारवी




दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए

राहत इंदौरी




ख़ुदा के वास्ते मौक़ा न दे शिकायत का
कि दोस्ती की तरह दुश्मनी निभाया कर

साक़ी फ़ारुक़ी




सौ बार तार तार किया तो भी अब तलक
साबित वही है दस्त ओ गरेबाँ की दोस्ती

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम