अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है
बशीर बद्र
चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है
अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है
फ़रहत एहसास
दो दरिया भी जब आपस में मिलते हैं
दोनों अपनी अपनी प्यास बुझाते हैं
फ़ारिग़ बुख़ारी
सफ़र में कोई किसी के लिए ठहरता नहीं
न मुड़ के देखा कभी साहिलों को दरिया ने
फ़ारिग़ बुख़ारी
बंद हो जाता है कूज़े में कभी दरिया भी
और कभी क़तरा समुंदर में बदल जाता है
फ़रियाद आज़र
अपने सिवा नहीं है कोई अपना आश्ना
दरिया की तरह आप हैं अपने कनार में
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
एक दरिया पार कर के आ गया हूँ उस के पास
एक सहरा के सिवा अब दरमियाँ कोई नहीं
हसन नईम