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Charagh शायरी | शाही शायरी

Charagh

17 शेर

शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को
ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का

दाग़ देहलवी




ख़ाक से सैंकड़ों उगे ख़ुर्शीद
है अंधेरा मगर चराग़-तले

एहसान दानिश




शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है
सौ चराग़ जलते हैं इक चराग़ जलने से

एहतिशाम अख्तर




सितारा-ए-ख़्वाब से भी बढ़ कर ये कौन बे-मेहर है कि जिस ने
चराग़ और आइने को अपने वजूद का राज़-दाँ किया है

ग़ुलाम हुसैन साजिद




अपनी तस्वीर के इक रुख़ को निहाँ रखता है
ये चराग़ अपना धुआँ जाने कहाँ रखता है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही




एक चराग़ और एक किताब और एक उम्मीद असासा
उस के बा'द तो जो कुछ है वो सब अफ़्साना है

इफ़्तिख़ार आरिफ़




रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है

इरफ़ान सिद्दीक़ी