वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है
मश्कीज़े से तीर का रिश्ता बहुत पुराना है
सुब्ह सवेरे रन पड़ना है और घमसान का रन
रातों रात चला जाए जिस जिस को जाना है
एक चराग़ और एक किताब और एक उमीद-ए-असासा
उस के बा'द तो जो कुछ है वो सब अफ़्साना है
दरिया पर क़ब्ज़ा था जिस का उस की प्यास अज़ाब
जिस की ढालें चमक रही थीं वही निशाना है
कासा-ए-शाम में सूरज का सर और आवाज़-ए-अज़ाँ
और आवाज़-ए-अज़ाँ कहती है फ़र्ज़ निभाना है
सब कहते हैं और कोई दिन ये हंगामा-ए-दहर
दिल कहता है एक मुसाफ़िर और भी आना है
एक जज़ीरा उस के आगे पीछे सात समुंदर
सात समुंदर पार सुना है एक ख़ज़ाना है
ग़ज़ल
वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है
इफ़्तिख़ार आरिफ़