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Budhapa शायरी | शाही शायरी

Budhapa

11 शेर

अब जो इक हसरत-ए-जवानी है
उम्र-ए-रफ़्ता की ये निशानी है

मीर तक़ी मीर




मैं तो 'मुनीर' आईने में ख़ुद को तक कर हैरान हुआ
ये चेहरा कुछ और तरह था पहले किसी ज़माने में

मुनीर नियाज़ी




वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें
ऐसी हैं जैसे ख़्वाब की बातें

in old age talk of youth now seems
to be just like the stuff of dreams

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




तलातुम आरज़ू में है न तूफ़ाँ जुस्तुजू में है
जवानी का गुज़र जाना है दरिया का उतर जाना

तिलोकचंद महरूम