अब जो इक हसरत-ए-जवानी है
उम्र-ए-रफ़्ता की ये निशानी है
रश्क-ए-यूसुफ़ है आह वक़्त-ए-अज़ीज़
उम्र इक बार-ए-कारवानी है
गिर्या हर वक़्त का नहीं बे-हेच
दिल में कोई ग़म-ए-निहानी है
हम क़फ़स-ज़ाद क़ैदी हैं वर्ना
ता चमन एक पर-फ़िशानी है
उस की शमशीर तेज़ है हमदम
मर रहेंगे जो ज़िंदगानी है
ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम निको याँ से
सब तुम्हारी ही मेहरबानी है
ख़ाक थी मौजज़न जहाँ में और
हम को धोका ये था कि पानी है
याँ हुए 'मीर' तुम बराबर ख़ाक
वाँ वही नाज़ ओ सरगिरानी है
ग़ज़ल
अब जो इक हसरत-ए-जवानी है
मीर तक़ी मीर