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अब्र में याद-ए-यार आवे है | शाही शायरी
abr mein yaad-e-yar aawe hai

ग़ज़ल

अब्र में याद-ए-यार आवे है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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अब्र में याद-ए-यार आवे है
गिर्या बे-इख़्तियार आवे है

बाग़ से गुल-इज़ार आवे है
बू-ए-गुल पर सवार आवे है

ऐ ख़िज़ाँ भाग जा चमन से शिताब
वर्ना फ़ौज-ए-बहार आवे है

ऐ सबा किस तरफ़ को गुज़री थी
तुझ से बू-ए-निगार आवे है

मुझ हवा-ख़्वाह से गुरेज़ सो क्यूँ
तुझ को क्या मुझ से आर आवे है

सुन के कहने लगे किसी के कोई
काहे को बार बार आवे है

इस क़दर बस-कि रोज़ मिलने से
ख़ातिरों में ग़ुबार आवे है

मैं तो क्या 'हातिम' ऐसे बद-ख़ू से
किस को सोहबत बरार आवे है