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ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है | शाही शायरी
gham-e-hayat bhi aaghosh-e-husn-e-yar mein hai

ग़ज़ल

ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है

शकील बदायुनी

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ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है
ये वो ख़िज़ाँ है जो डूबी हुई बहार में है

असर शराब का अहद-ए-वफ़ा-ए-यार में है
क़दम क़दम पे जो लग़्ज़िश सी ए'तिबार में है

शग़ुफ़्तगी-ए-दिल-ए-कारवाँ को क्या समझे
वो इक निगाह जो उलझी हुई बहार में है

शिकस्त-ए-हौसला-ए-ज़ब्त-ए-ग़म मुझे मंज़ूर
चले भी आओ कि दिल कब से इंतिज़ार में है

ये इज़्तिराब का आलम ये शौक़-ए-बे-पायाँ
'शकील' आज बिला-शुबा कू-ए-यार में है