EN اردو
आहट शायरी | शाही शायरी

आहट

12 शेर

'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है

अख़्तर होशियारपुरी




जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए
बार-हा दिल ने ये महसूस किया तुम आए

असद भोपाली




मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी
कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए

बशीर बद्र




ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो
लेकिन इक आहट जानी-पहचानी होती है

भारत भूषण पन्त




बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी




दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में

गुलज़ार




आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो

जाँ निसार अख़्तर