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जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए | शाही शायरी
jab zara raat hui aur mah o anjum aae

ग़ज़ल

जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए

असद भोपाली

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जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए
बार-हा दिल ने ये महसूस किया तुम आए

ऐसे इक़रार में इंकार के सौ पहलू हैं
वो तो कहिए कि लबों पे न तबस्सुम आए

न वो आवाज़ में रस है न वो लहजे में खनक
कैसे कलियों को तिरा तर्ज़-ए-तकल्लुम आए

बार-हा ये भी हुआ अंजुमन-ए-नाज़ से हम
सूरत-ए-मौज उठे मिस्ल-ए-तलातुम आए

ऐ मिरे वादा-शिकन एक न आने से तिरे
दिल को बहकाने कई तल्ख़ तवहहुम आए