सामेआ लज़्ज़त-ए-बयान-ज़दा
ज़ेहन ओ दिल सेहर-ए-दास्तान-ज़दा
फ़िक्र ओ तहक़ीक़ रेहन-ए-मोहर-ओ-सनद
तालिब-ए-इल्म इमतिहान-ज़दा
ज़ात की फ़िक्र है क़यास-आलूद
ज़िंदगी का यक़ीं गुमान-ज़दा
रात पहचान दे गई सब को
सुब्ह चेहरे मिले निशान-ज़दा
ताक में है न कि तआक़ुब में
तू शिकारी है पर मचान-ज़दा
उन की फ़िक्र-ए-रसा फ़लक-पैमा
अपनी सोचें हैं आसमान-ज़दा
ख़ुद से रिश्ते नहीं रहे लेकिन
लोग अब भी हैं ख़ानदान-ज़दा
रात है लोग घर में बैठे हैं
दफ़्तर-आलूदा ओ दुकान-ज़दा
ग़ज़ल
सामेआ लज़्ज़त-ए-बयान-ज़दा
अब्दुल अहद साज़