रिदा-ए-संग ओढ़ कर न सो गया हो काँच भी
हरीम-ए-ज़ख़्म लाज़मी है ख़ैर-ओ-शर की जाँच भी
तनवीर मोनिस
अपने काँधे पे लिए फिरती है एहसास का बोझ
ज़िंदगी क्या किसी मक़्तल की तमन्नाई है
तनवीर सामानी
अपनी सूरत भी कब अपनी लगती है
आईनों में ख़ुद को देखा करता हूँ
तनवीर सामानी
अपनी सूरत भी कब अपनी लगती है
आईनों में ख़ुद को देखा करता हूँ
तनवीर सामानी
फ़र्ज़ी क़िस्सों झूटी बातों से अक्सर
सच्चाई के क़द को नापा करता हूँ
तनवीर सामानी
फ़िक्र की आँच में पिघले तो ये मालूम हुआ
कितने पर्दों में छुपी ज़ात की सच्चाई है
तनवीर सामानी
फ़िक्र की आँच में पिघले तो ये मालूम हुआ
कितने पर्दों में छुपी ज़ात की सच्चाई है
तनवीर सामानी